Wednesday, January 30, 2019

रागांग(आरोह-अवरोह, पकड़, आलाप, ताना, स्थाई और अन्तरा)


रागांग(आरोह-अवरोह, पकड़, आलाप, ताना, स्थाई और अन्तरा)



आशासु राशीभवदङ्गवल्लीभासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम् । मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं वन्देऽरविन्दासनसुन्दरी त्वाम् ॥



आरोह-अवरोह: किसी भी स्वर से ऊपर की ओर गाने या बजने की क्रिया को आरोह कहते है उसी प्रकार किस भी स्वर से निचे की ओर गाने या बजने की  क्रिया को अवरोह कहते है|
जैसे-     आरोह:  सा रे ग म ...ध नि सां
अवरोह:  सां नि ध प ...ग रे सा

पकड़(चलन) :  स्वरोंका विशिष्ट समुदाय जिससे राग पहचाना जा सकता है उसे पकड़ या चलन कहते है |
जैसे राग यमन में -
पकड़- ऩि रे ग रे, प रे, ऩि रे सा ।

आलाप: नियमानुसार  किसी भी राग का विस्तार आहिस्ता आहिस्ता करने की क्रिया को आलाप कहते है | आलाप को स्वर विस्तार भी कहते है | आलाप आमतौर पर आकर, ईकार  में गया जाता है |
जैसे राग यमन में-
येरी आली पिया बिन सखी -
सा    -    नि  -   | ध़   ऩि   सा  -  |  ऩि    रे       रे   |  ऩि  रे  सा   - 

ताना:    राग में आने वाले स्वरों को जल्द गति से गाने की क्रिया को ताना कहते है |
जैसे राग यमन में –
येरी आली पिया बिन सखी- निरे गम॑ पम॑ धनि सांनि धनि रेंसां
   निध पम॑ गम॑ धनि सांनि धप धनि सां

स्थाई और अन्तरा: गीत के प्रथम विभाग को स्थाई और द्वितीय विभाग को अन्तर कहा जाता है | स्थाई का विस्तार मन्द्र और मध्य सप्तक में होता है और अन्तरा का विस्तार मध्य और तार सप्तक में किया जाता है |

Tuesday, January 29, 2019

राग यमन (बोल ताना )






श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे श्वेताम्बरावृतमनोहरमञ्जुगात्रे उद्यन्मनोज्ञसितपङ्कजमञ्जुलास्ये विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्




राग यमन (बोल ताना )

) येरी आली -ऩिरे गम॑ पम॑ धध, पम॑ गरे सा-
) येरी आली -ऩिरे गम॑ धध निध, निध गरे सा-
) येरी आली - ऩिरे गम॑ धनि रेसां, निध पम॑ गरे सा
) येरी आली पिया बिन सखी- निरे गम॑ पम॑ गम॑, धनि सांनि धनि रेंसां 
   निध पम॑ गम॑ धनि, सांनि धप धनि सां-

Monday, January 28, 2019

राग यमन: आलाप स्थाई और अंतरा

Raag yaman



वीणाधरे विपुलमङ्गलदानशीले भक्तार्तिनाशिनि विरिञ्चिहरीशवन्द्ये कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे विद्याप्रदायिनि सरस्वतिनौमि नित्यम्






आलाप  (स्थाई और अंतरा )


(स्थाई)


येरी आली पिया बिन सखी

१) सा    -    नि  -   | ध़   ऩि   सा  -  |  ऩि    रे       रे   |  ऩि  रे  सा   - 
२) ऩिरे गम॑     रे  |  ऩि   रे   सा   -  |  ऩि    रे       रे   |  ऩि  रे  सा   -
३) ऩिरे गम॑      -  |     म॑       -  |  म॑ध पम॑      रे  |   ऩि  रे  सा   -
४) ऩिरे गम॑    नि  |  म॑       नि  -  | ऩिरे गम॑     म॑  |      रे  सा   -

(अन्तरा)

जब से पिया परदेस गवन  कीनो ...


१) सां - नि - | ध नि सां - | नि रे ग म |ध नि सां -

२) सां - निध पम | गम॑ धनि सां - | ध नि सां रें | नि रें सां -
३) निरे गम॑ पम गम॑ | ध नि सां - | नि रें गं रें | नि रें सां -

Friday, January 25, 2019

राग यमन (बंदिश येरी आली पिया बिना सखी)

!! सा मा पा तू सरस्वती भगवती !!


नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् । नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥

छोटा ख्याल:    

(स्थाई)

येरी आली पिया बिना सखी|
कलन परत मोहे घडी पल छीन दिन ||

(अन्तर)
 जब से पिया परदेस गवन कीनो |
रतिया कटत मोहे तारे गीन-गीन ||1||

                                                               

(स्थाई)     
                                        
                                                                 |           
                                                                 |          खि
नी  निध    पम॑  |  रे   -   सा   -  |    रे  म॑    |    -  -  -
ये    s    री    s    | आ   s   ली  s  | पि  या  बी  न | s  s  s  s 
   म॑         |   म॑        -   |   नी        म॑   |      रे   सा   -
           |         मो   हे |     डी        |   छी     गि     

(अंतरा)

म॑   म॑         |   म॑         -   |   सां   -   -   -    |   नी   रें  सां   -  
      से   पि  |  या   s         |   दे   s         |        कि  नो
नि   रें   गं    रें   |  सां  नि       |   नि       म॑   |      रे   सा   -
   ति   या     |       मो  हे   |  ता   s    रे   s   |  गि     गि           

Wednesday, January 23, 2019

राग यमन (राग परिचय:आरोह -अवरोह)


!! सा मा पा तू सरस्वती भगवती !!


वीणाधरे विपुलमङ्गलदानशीले भक्तार्तिनाशिनि विरिञ्चिहरीशवन्द्ये । कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे विद्याप्रदायिनि सरस्वतिनौमि नित्यम् ॥


राग परिचय:

 कल्याण ठाट से उत्पन्न यमन राग बहोत ही प्रसिद्ध रागों में से एक राग है इसे कल्याण राग के नाम से भी जाना जाता है | मुग़ल शाशन कल में मुसलमानों ने इस यमन अथवा इमन राग कहना शुरू किया| राग में कोई भी स्वर वर्जित नहीं है इसलिए इसकी जाती संपूर्ण - संपूर्ण कहलाती है| इस राग में माध्यम तीव्र और बाकि सभी स्वर शुध्द लगते है| यमन राग का वादी स्वर गन्धर्व (ग) और संवादी स्वर निषाद (नी) है|
      
 श्रृंगार रास प्रधान यह राग को रात्रि के प्रथम प्रहार में गया जाता है| इस राग का विस्तार करते स्वरों का उलट पलट करने पर भी इस राग का स्वरुप बिगड़ता नहीं है| यमन राग पूर्वान्वादी राग है| इस राग की जाती संपूर्ण होने पर भी  आरोह में पंचम वर्जित किया जाता है|


आरोह :- ऩि रे ग, म॑ प, नि सां ।

अवरोह:- सां नि ध प, म॑ ग रे सा ।

पकड़- ऩि रे ग रे, प रे, ऩि रे सा ।

ताल: त्रिताल

                                     सरगम गीत


                                          (स्थाई)

       -     |  म॑            म॑  | प    -    -    -   |      म॑        रे

सा   रे      रे  |      म॑          | प   म॑      रे   |      रे    सा    -

नी   रे      म॑  |         नी   सां  | रें  सां  नी     |      म॑        म॑

                                          (अंतरा)

    म॑        सां  |  सां    सां   सां    सां  |  नी     रें    गं    रें  |  सां   नी      

गं    रें    सां   नी   |            नी       |       म॑        रे  |       रे    सा    -

नी   रे         म॑   |           नी    सां  |    रें   सां   नी     |       म॑        म॑

रागांग : वादी, संवादी, अनुवादी, विवादी


!! सा मा पा तू सरस्वती भगवती !!






लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति: । एताभि: पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति ॥





वादी: जिस स्वर का राग में सबसे अधिक मात्रा में उपयोग होता है उसे वादी स्वर कहते है |  जैसे - राग यमन में 'गंधार' प्रयोग अन्य स्वरों के तुलना में अधिक बार किया जाता है इसलिए राग यमन का वादी स्वर 'गंधार' है |

संवादी:  वादी स्वर के बाद जिस स्वर का प्रयोग राग में अधिक मात्रा में होता है उसे संवादी स्वर कहते है |
संवादी स्वर को मंत्री की उपमा दी जाती है | उदा. राग यमन में 'निषाद' संवादी स्वर है |

अनुवादी: वादी और संवादी स्वर के अलावा राग में जो भी अन्य स्वर होते है उसे अनुवादी स्वर कहते है |

उदा : राग यमन

आरोह :- ऩि रे ग, म॑ प, ध नि सां ।

अवरोह:- सां नि ध प, म॑ ग रे सा ।

वादी स्वर- ‘ग’

संवादी स्वर- ‘नि’

अनुवादी स्वर- सा, रे, म॑, प, ध

विवादी: जिस स्वर का प्रयोग करने से राग का स्वरुप बिगड़ जाता है उसे विवदी स्वर कहते है |

उदा: राग यमन में आरोह में पंचम वर्जित है अगर हम राग गाते समय आरोह में पंचम का प्रयोग करेंगे तो इसका स्वरुप बिगड़ जायेगा ||

Monday, January 21, 2019

रागांग (राग रचना के नियम, जाती,) और अलंकार या पलटा


!! सा मा पा तू सरस्वती भगवती !!


शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं । वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् । हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां वन्दे ताम् परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥








अलंकार या पलटा :-


स्वरोंके विशिष्ट विशेष और नियमित रचना को अलंकार या पलटा कहा जाता है| इसमें आरोह और अवरोह दोनों लिए जाते है |
उदा:-   आरोह: सारेग, रेगम, गमप ...... पधनि, धनिसां |
अवरोह: सांनिध, निधप, धपम ...... मगरे, गरेसा |

रागांग  (राग रचना के नियम, जाती,)

राग रचना के नियम: 
मनोरंजन के और रस उत्पन्न करनेवाली नियमबद्ध स्वर समूह को राग कहते है |
राग रचना के मुख्या चार नियम है|

१) राग में कम से कम पांच स्वर होना जरुरी है|
२) माध्यम और पंचम दोनों एक साथ वर्ज्य नहीं होना चाहिए |
३) एक ही स्वर दोनों स्वरोंके रूप में (शुद्ध और विकृत) पास पास नहीं आने चाहिए | जैसे शुद्ध निषाद (नि)और कोमल निषाद  (नि) दोनों पास पास नहीं आने चाहिए |
४) आरोह, अवरोह, चलन(पकड़), गायन समयवादी स्वर और संवादी स्वर आदि नियमोंका पालन होना चाहिए | 

 जाती: रागो में आनेवाले स्वर संख्या के अनुसार राग की जाती का वर्गीकरण किया गया है | राग में मुख्या तीन जाती है औडव षाड़व और संपूर्ण |

औडव: पांच स्वरों के राग की जाती औडव कहलाती है |
उदा: राग भूपाली, दुर्गा, वृन्दावाणी संरंग...

षाड़व: छह स्वरों के राग को षाड़व जाती का राग कहते है |
उदा: मारवा, पुरिया...

संपूर्ण: इस जाती के राग में पुरे सात स्वर होते है |
उदा: काफी, भैरव ...

कुछ रागो में आरोह -अवरोह सामान ही होते उस समय वह मिश्रा जाती के राग कहलाते है | जैसे - औडव-षाड़व (राग केदार), औडव-संपूर्ण (राग आसावरी), षाड़व-संपूर्ण (राग खमाज) आदि |

Saturday, January 19, 2019

सप्तक


!! सा मा पा तू सरस्वती भगवती !!

"सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् । देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जना: ॥"

सप्तक


"'सा ' से  'नि' तक जो स्वर समूह है, जिसमे सात शुद्ध और पांच विकृत इसमें कुल बारह स्वर आते है इन्हे सप्तक कहा जाता है "|
इस प्रकार हिंदुस्थानी संगीत पद्धति में तीन प्रकार के सप्तकों का प्रयोग होता है|
सप्तक प्रकार
१) मंद्र सप्तक
२) मध्य सप्तक
३) तार सप्तक

मंद्र सप्तक : यह मध्य सप्तक के पहले का सप्तक होते है| यह सप्तक मध्य सप्तक का आधा होता है, अर्थात् मंद्र सप्तक के प्रत्येक स्वर की आन्दोलन संख्या मध्य सप्तक के उसी स्वर के आन्दोलन संख्या की आधी होगी इसलिए मंद्र सप्तक से स्वर सुनाने में  सबसे धीमी अथवा (मोटी) गंभीर प्रकार की होती है| हम जो प्रमाण षड्ज मानते है उससे एक सप्तक निचे के षड्ज से लेकर प्रारम्भ होनेवाला सप्तक मंद्र सप्तक होता है|
उदा: सा़ रे़ ग़ म़ प़ ध़ नि़ सा .... (सा़ रे़ ग़ म़ प़ ध़ नि़… मंद्र सप्तक के स्वर तथा सा रे ग म…  मध्य सप्तक के स्वर)

मध्य सप्तक : मंद्र सप्तक के निषाद के बाद से मध्य सप्तक की शुरुवात होती है| इन स्वरोंकी आंदोलन संख्या मंद्र सप्तक से दुगुनी होती है इसलिए सुनाने में मंद्र सप्तक के स्वरोंकी तुलना में ये थोड़ी पतली और मधुर लगती है| इन स्वरों के लिए कोई चिन्ह नहीं होता| जैसे:- सा रे ग म ...
हम सबसे अधिक इसी सप्तक में गाते और बजाते है |

तार सप्तक: सप्तक का तीसरा प्रकार तार सप्तक है| ये मध्य सप्तक के बाद आता है| तार सप्तक की स्वरों की आंदोलन संख्या मध्य सप्तक के स्वरोंके तुलना में दुगुनी होती है| इस सप्तक के स्वरोंको पहचानने के लिए इनके ऊपर अनुस्वार याने बिंदु दर्शाया जाता है| 
उदा:- सां रें गं मं .....