!! सा मा पा तू सरस्वती भगवती !!
"सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदे कामरूपिणी । विद्यारम्भं
करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ॥"
आज हम स्वर और राग के बारे में चर्चा करेंगे ...
स्वर:
विशिष्ट कंपनसँख्या के नाद को स्वर कहा जाता है | भारतीय संगीत में प्रमुख सात स्वर इस प्रकार है:
षड्ज (सा), ऋषभ (रे), गांधार (ग), मध्यम (म), पंचम (प), धैवत (ध), और निषाद (नि)| और इन सात स्वर मिलकर एक सप्तक तैयार करते है| स्वर अपने मूल स्थान से या अपनी जगह से निचे उतर आते है तो उन्हें कोमल स्वर कहते है| ये कोमल स्वर गिनती में ४ है रे ग ध और नि | स्वर लिपि मे इसे स्वर के निचे - देकर चिन्हित किया जाता है | उदा: रे ग ध नि.
जब स्वर अपने मूल स्थान से हटकर थोड़े उपकर की और जाती है तो उसे तीव्र स्वर कहा जाता है | स्वर सप्तक में एक ही तीव्र स्वर है म (मध्यम )उसे इस प्रकारसे (म॑) चिन्हित किया गया है|
राग:
"यो S सौ ध्वनिविशेषतु स्वरवर्णविभूषित: |
रज्जको जानचित्तनाम् स राग: कथ्यते बुधै: |"
स्वर और वर्ण से युक्त (विभूषित) ऐसी रचना जो रंजक यानि मनोरंजन करने वाली
होती है उसे गुणीजन राग कहते है|
राग इस शब्द का उत्पत्ति रज्ज् याने रिझाना या मनोरंजन करना इस शब्द से हुई
है| भारतीय संगीत में राग प्रमुख विशेषता मानी जाती है| ग्रंथो में में
" रज्जयति इति राग: इस प्रकार से इस की परिभाषा बताई गई है|
हम इसकी व्याख्या इस प्रकार से कर सकते है :-
मनोरंजन और रास उत्पन्न करने वाली नियमबद्ध स्वर समूह को राग कहते है |
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