Saturday, January 19, 2019

सप्तक


!! सा मा पा तू सरस्वती भगवती !!

"सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् । देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जना: ॥"

सप्तक


"'सा ' से  'नि' तक जो स्वर समूह है, जिसमे सात शुद्ध और पांच विकृत इसमें कुल बारह स्वर आते है इन्हे सप्तक कहा जाता है "|
इस प्रकार हिंदुस्थानी संगीत पद्धति में तीन प्रकार के सप्तकों का प्रयोग होता है|
सप्तक प्रकार
१) मंद्र सप्तक
२) मध्य सप्तक
३) तार सप्तक

मंद्र सप्तक : यह मध्य सप्तक के पहले का सप्तक होते है| यह सप्तक मध्य सप्तक का आधा होता है, अर्थात् मंद्र सप्तक के प्रत्येक स्वर की आन्दोलन संख्या मध्य सप्तक के उसी स्वर के आन्दोलन संख्या की आधी होगी इसलिए मंद्र सप्तक से स्वर सुनाने में  सबसे धीमी अथवा (मोटी) गंभीर प्रकार की होती है| हम जो प्रमाण षड्ज मानते है उससे एक सप्तक निचे के षड्ज से लेकर प्रारम्भ होनेवाला सप्तक मंद्र सप्तक होता है|
उदा: सा़ रे़ ग़ म़ प़ ध़ नि़ सा .... (सा़ रे़ ग़ म़ प़ ध़ नि़… मंद्र सप्तक के स्वर तथा सा रे ग म…  मध्य सप्तक के स्वर)

मध्य सप्तक : मंद्र सप्तक के निषाद के बाद से मध्य सप्तक की शुरुवात होती है| इन स्वरोंकी आंदोलन संख्या मंद्र सप्तक से दुगुनी होती है इसलिए सुनाने में मंद्र सप्तक के स्वरोंकी तुलना में ये थोड़ी पतली और मधुर लगती है| इन स्वरों के लिए कोई चिन्ह नहीं होता| जैसे:- सा रे ग म ...
हम सबसे अधिक इसी सप्तक में गाते और बजाते है |

तार सप्तक: सप्तक का तीसरा प्रकार तार सप्तक है| ये मध्य सप्तक के बाद आता है| तार सप्तक की स्वरों की आंदोलन संख्या मध्य सप्तक के स्वरोंके तुलना में दुगुनी होती है| इस सप्तक के स्वरोंको पहचानने के लिए इनके ऊपर अनुस्वार याने बिंदु दर्शाया जाता है| 
उदा:- सां रें गं मं .....


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