!!
सा मा पा तू सरस्वती भगवती !!
लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति: ।
एताभि: पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति ॥
वादी:
जिस स्वर का राग में सबसे अधिक मात्रा में उपयोग होता है उसे वादी स्वर कहते है
| जैसे - राग यमन में 'गंधार' प्रयोग अन्य
स्वरों के तुलना में अधिक बार किया जाता है इसलिए राग यमन का वादी स्वर 'गंधार' है
|
संवादी: वादी स्वर के बाद जिस स्वर का प्रयोग राग में अधिक
मात्रा में होता है उसे संवादी स्वर कहते है |
संवादी स्वर को मंत्री की उपमा दी जाती है | उदा. राग यमन
में 'निषाद' संवादी स्वर है |
अनुवादी:
वादी और संवादी स्वर के अलावा राग में जो भी अन्य स्वर होते है उसे अनुवादी स्वर कहते
है |
उदा
:
राग यमन
आरोह
:-
ऩि रे ग, म॑ प, ध नि सां ।
अवरोह:- सां नि ध प, म॑ ग रे सा ।
वादी स्वर- ‘ग’
संवादी स्वर- ‘नि’
अनुवादी स्वर- सा, रे, म॑, प, ध
विवादी: जिस स्वर का प्रयोग करने से राग का स्वरुप बिगड़ जाता है उसे विवदी स्वर कहते है |
उदा: राग यमन में आरोह में पंचम वर्जित है अगर हम राग गाते समय आरोह में पंचम का प्रयोग करेंगे तो इसका स्वरुप बिगड़ जायेगा ||
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